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Kavita Kosh से
|रचनाकार=रति सक्सेना
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बाजार भरा है आमों से
ठसाठस भरे ठेले, दूकाने
सड़कों के किनारे के ढ़ेर
आम<br>के मौसम मेंकहीं भी हों<br>निराश रहते हैंलपक कर दौड़ता है मन<br>तमाम छोटे...मोटे खाने को<br><br>कुरूप सुरूप फल
आम के मौसम में<br>का कहना क्यानिराश रहते हैं<br>इसकी तुलना सिर्फ एक से हो सकती हैतमाम छोटे...मोटे <br>कुरूप सुरूप फल<br><br>वह है दोस्ती
दोस्ती भी आम का कहना क्या<br>की तरहइसकी तुलना सिर्फ एक से हो सकती भरभरा कर चली आती है<br>वह मुँह में स्वाद घुलने घुलने तकछूछी गुठली हाथ रह जाती है दोस्ती<br><br>
दोस्ती भी आम की तरह<br>भरभरा कर चली आती है<br>गुठली परमुँह में स्वाद घुलने घुलने तक<br>मारते हमछूछी गुठली हाथ रह जाती है<br><br>कल्पना करते हैं उन दिनों कीजब वह रसीली, गुदीली औरभरी भरी हुआ करती थी
आम भुला जाती हूँ
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