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उसका आलिंगन / रति सक्सेना

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|रचनाकार=रति सक्सेना
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उसने बाहें फैलाईं
 
वह डूबने लगी
 
समन्दर बनती माँसपेशियों में
 
चुनने लगी सीप-घोंघे
 
उसकी बाहे फैली रही
 
वह लेटी रही
 
गुनगुनी रेत पर
 
धूप में भीगती हुई-सी
 
इस बार फिर बढ़ी उसकी बाहे
 
वह खोजती रही
 
ख़ुद को
 
चट्टान होती मांसपेशियों में
 
अब वह टटोल रही है
 
घुप्प अंधेरे में
 
लौटती बाहों में चिपके
 
अपने आत्मविश्वास को।
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