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शिलाँग, 16 अप्रैल 89 / निलिम कुमार

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|रचनाकार=निलिम कुमार |अनुवादक=राजेन्द्र शर्मा
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<Poem>
वहाँ सो रही थी दुनिया की कठोरतम चट्टान
'''अनुवाद - राजेन्द्र शर्मा
 
प्रस्तुत है इसी कविता का एक और अनुवाद
 
दुनिया की सबसे सख्त चट्टान एक सफ़ेद देवदार
के नीचे सो रही थी. व्हिस्की का पीला नशा मुझे
इस चट्टान तक ले आया. मुझे नहीं मालूम किसकी
खोज में चट्टान की दरारें और तरेड़ें चाँदनी से भर गई थीं,
चट्टान की क्रिस्टल देह किसी नग्न लड़की की तरह दमक रही थी
कान की मांद में एक पीली हवा सरसरा रही थी
 
मेरे जूते चाँदनी में ज़र्द पड़ रहे थे. सब कोई
जैसे चाँदनी में नग्न होना चाहता था, मेरे वस्त्र
बेचैन थे. चट्टान तहाई जा रही थी, मुड़तुड़ रही थी
मेरे ओठों की ओर झुकती हुई
 
दुनिया की सबसे सख्त चट्टान
दो सेकण्ड के लिए नर्म पड़ रही थी
पीली हवा, चाँदनी और एक सफ़ेद देवदार के नीचे
 
अचानक एक जंगली काँटा चुभ गया मुझे
मेरे पैरों से खून बह निकला और में हैरान रह गया देखकर
की लाल नहीं, पीला था मेरा खून
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