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Kavita Kosh से
तुम्हारे हाथ से टंक कर <br>
बने हीरे, बने मोती<br>
बटन मेरी कमीज़ों के |।<br>
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नयन का जागरण देतीं,<br>
कभी भीगी हुई अलकें<br>
कभी ये चुंबनों के फूल <br>
केसर गंध सी पलकेँपलकें,<br>
सवेरे ही सपन झूले <br>
बने ये सावनी लोचन <br>
कई त्यौहार तीज़ों तीजों की के |।<br>
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बनी झंकार वीणा की<br>
तुम्हारी चुड़ियों चूड़ियों के हाथ में<br>
यह चाय की प्याली,<br>
थकावट की चिलकती धूप को<br>
तुम्हारी दृष्टियाँ छूकर <br>
उभरने और जयादा लग गए हैं<br>
रंग चीज़ों के ।<br>