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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
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}}


जो बात तुझ में है, तेरी तस्वीर में नहीं


रंगों में तेरा अक्स ढला, तू न ढल सकी

साँसों की आग, जिस्म की ख़ुशबू न ढल सकी

तुझ में जोलोच है, मेरी तहरीर में नहीं


बेजान हुस्न में कहाँ गुफ़तार की अदा

इन्कार की अदा है न इक़रार की अदा

कोई लचक भी जुल्फ़े गिरहगीर र्में नहीं


दुनिया में कोई चीज़ नहीं है तेरी तरह

फिर एक बार सामने आजा किसी तरह

क्या एक और झलक, मेरी तक़दीर में नहीं ?


जो बात तुझ में है, तेरी तस्वीर में नहीं
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