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{{KKRachna
|रचनाकार=सविता सिंह
|संग्रह=नींद थी और रात थी
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प्रेम करती हुईस्त्री ही अब भी पसन्द की जाती है

छल में भी एक अजीब जादू है

जो झूठ में नहीं


कितना मिलता-जुलता है झूठ भी सच से आख़िर

मृत्यु ज्यों प्रेम से


अन्त में सच ही बचाता है हर स्त्री को

लेकिन तब तक वह तब्दील हो चुका होता है

झूठ में कुछ इस तरह

कि वह उस के किसी काम का नहीं रहता


छल रहता है ज्यों का त्यों तब भी

अपने काम करता

प्रेम और मृत्यु का रथ हाँकता
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