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{{KKRachna
|रचनाकार=सविता सिंह
|संग्रह=नींद थी और रात थी
}}

दुख चला आ रहा था पुरानी किसी नाव की तरह मेरी तरफ़

मन्द-मन्द जल को चीरता


तभी मेरी हथेली पर एक तितली आ कर बैठ गई थी

अपने पंखों को हाथों की तरह जोड़ कर

वह किसी प्रार्थना में लीन हो गई थी

मेरे पास अपना हाथ स्थिर रखने के सिवा

ईश्वर पर करने को दूसरा कोई उपकार न था


दुख था चमकीला होता-सा

और प्रार्थना तितली की थी
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