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स्त्री सच है / सविता सिंह

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|रचनाकार=सविता सिंह
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चारों तरफ़ नींद है

प्यास है हर तरफ़

जागरण में भी

उधर भी जिधर स्वप्न जाग रहे हैं

जिधर समुद्र लहरा रहा है


दूर तक देख सकते हैं

समतल पथरीले मैदान हैं

प्राचीनतम-सा लगता विश्व का एक हिस्सा

और एक स्त्री है लांघती हुई प्यास
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