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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = छैंया-छैंया / गुलज़ार
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<poem>
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवज़ें
कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी<BR>पूर्णमासी की रात जंगल मेंनीले शीशम के पेड़ के नीचे बैठकर तुम कभी सुनो जानमभीगी-भीगी उदास आवाज़ेंनाम लेकर पुकारती है तुम्हेंतुमको ये चाँदनी पूर्णमासी की आवज़ें<BR><BR>रात जंगल में...
पूर्णमासी की रात जंगल में<BR>नीले शीशम के पेड़ के नीचे <BR>चाँद जब झील में उतरता हैबैठकर तुम कभी सुनो गुनगुनाती हुई हवा जानम<BR>भीगीपत्ते-भीगी उदास आवाज़ें<BR>पत्ते के कान में जाकरनाम लेकर पुकारती ले ले के पूछती है तुम्हें<BR>पूर्णमासी की रात जंगल में...<BR><BR>
पूर्णमासी की रात जंगल में<BR>चाँद जब झील में उतरता है<BR>गुनगुनाती हुई हवा जानम<BR>पत्ते-पत्ते के कान में जाकर<BR>नाम ले ले के पूछती है तुम्हें<BR><BR> पूर्णमासी की रात जंगल में<BR>तुमको ये चाँदनी आवाज़ें <BR>कितनी सदियों से ढूँढ़ती होंगी<BR/poem>
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