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03:35, 24 सितम्बर 2013
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रचनाकार: [[शैलेन्द्रशुभ्र दासगुप्त]]
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क्रान्ति के लिए जली मशालदेश मतलब सिल्क का झकझक करता हुआ झंडा नहीं ।क्रान्ति के लिए उठे क़दम !देश मतलब रेड रोड पर परेड नहींटी०वी० पर मंत्रियों का श्रीमुख नहीं देश का मतलबदेश का मतलब एसियाड,फ़िल्म फेस्टिवल, संगीत-समारोह नहीं ।
भूख के विरुद्ध भात के लिएरात के विरुद्ध प्रात के लिएमेहनती ग़रीब जाति के लिएहम लड़ेंगेदेश मतलब कुछ और, हमने ली कसम !कुछ अलग ही ।
छिन रही हैं बीड़ी बाँधते-बाँधते जो दुबला आदमी क्रमश: और दुबला हो रहा हैअंजाने में टी०बी० के कीटाणु अपने सीने की रोटियाँखाँचे में पाल रहा हैबिक रही हैं उस आदमी की बोटियाँके निद्राहीन रात मेंकिन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँजब गले में उठता है रक्त तब उसी रक्त के धब्बों-थक्कों मेंलूट का यह राज हो ख़तम !जागता है देश ।
तय सारा दिन ट्रेन की बोगी में आँवला या बादाम बेचता हुआपढ़ा-लिखा युवक जिसे हॉकर कार्ड पाने के बदलेइच्छा के विरुद्ध जाना पड़ता है जय मजूर सभी रैलियों मीटिंग-समावेशों मेंगला फाड़-फाड़कर लगाना पड़ता है 'बंदे मातरम' या 'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' के नारेउसी युवक की, किसान सेफ़्टीपिन लगी हवाई चप्पलजब टूट जाती है अचानक यातायात के पथ परतब उसी हताशा कीघड़ी मेंजागता है देश । सिनेमा हॉल के सामने सिल्क की, जहान सस्ती साड़ी और उससे भी सस्तीमेकअप से खुद को बेचने के लिए सजाए जो मुफ़लिस लड़कीरोज़ ग्राहक पकड़ने कीख़ातिर तीव्र वासना में निर्लज्ज हो पल-पल गिनतीजब उसका ग्राहक आता है और वही ग्राहक जब बुलाता है उसे -“आ ...गाड़ी के अंदर “- उसी आह्वान मेंजागता है देश । देश मतलब लालकिला से प्रधानमंत्री का स्वाधीनता भाषण नहींदेश मतलब माथे पे लाल बत्ती लगाए झकमक अंबेसडर नहींसचिन का शतक या सौरभ की कैप्टेनसी नहीं देश का मतलबदेश का मतलब लीग या डुरांड नहीं | देश मतलब कुछ और, अवाम कुछ अलग ही | नौ बरस से बंद कारखाने में जंग लगे ताला लटकते गेट के सामनेझूलसा हुआ जो भूतपूर्व श्रमिक माँगता है भीखउसकी आँखों कीतीव्र अग्नि में है देश । नेताओं की बात पर ख़ून से रंगे हुए निशान ,डकैती सब पाप करके अचानक फँस जाने परइलाक़े में आतंक का पर्याय बना जो युवक पुलिस कीधुलाई सेलिख रही लॉकअप के अँधेरे में कराह रहा है मार्क्स उसकी आँखों की क़लम भर्त्सना में है देश । सारा जीवन छात्रों को पढ़ाकर परिवारहीन स्कूल मास्टर ! जब प्राप्य पेंशन न पाकर रेलवे स्टेशन पर मांगने बैठते हैं भीखउनके अल्मुनियम के कटोरे की शून्यता में है देश । देश है । रहेगा । बनावटी कोजागरी* में नहींअसल अमावस की घोर अंधकार में । *आश्विन महीने के कोजागरी पूर्णिमा में धन की देवी लक्ष्मी के आगमन पर उनकी पूजा होती है | अनुवाद : सुन्दर सृजक
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