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तरंग / मानोशी

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'<poem>एक तरंग समंदर से, आकाश से, धरती से बहुत गहरी बहुत फ...' के साथ नया पन्ना बनाया
<poem>एक तरंग
समंदर से, आकाश से, धरती से
बहुत गहरी बहुत फैली, बहुत ऊँची
सीमाहीन, अदृश्य, नि:शब्द,
विशाल ब्रह्मांड में
न चाहकर, न जानकर
जोड़ती है
किन्हीं दो साकार
पर अस्तित्वहीन को
चुपचाप
अपनी सत्ता में कहीं।</poem>