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भगवान सिंह 'भास्कर'

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<poem>जान हमरा पर आपन निसार का करी
बश में दोसरा के रहिके करार का करी

हियरा हहरत रही, मनवा डहकत रही,
जेके परदेश पिय ऊ सिंगार का करी

तरसे बदरा नियर ई नयन रात-दिन,
लाख अइबे करी त सुखार का करी

जेकरा दिल में लागल आग बिरहा के बा
ओके पावस के बरखा बहार का करी

पाती पढ़-पढ़के छाती जरे रात-दिन
रोज ढ़रकत नयनवा के धार का करी

जवन सोना रहे सगरो माटी भइल
केतनो गढ़वइब नौलखा हार का करी

हम त मर गइलीं बस तोहरा मुसकान पर
तीर-तलवार-भाला-कटार का करी

नाव मँझधार में फंस गइल ‘भास्कर’
जे सहारा ना देब, त पार का करी
</poem>
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