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<poem>जिनिगी के दियना उमिरिया के बाती
जरे दिन राती, बरे दिन राती।
पपनी के कोर भींजे सुधिया के लोर से
साँझ से उदासी मिले, ओरहन भोर से
डँहकेला रोइयाँ कहिया बरिसी सेवाती। जिनिगी.....

धार में समय के डोले डगमग जियरा
असरा तँवाय केहू लउके ना नियरा
सुख-दुख छने-छने खेले दोलापाती। जिनिगी....

साध के चनन से लिपि अँगना-दुअरिया
नेहिया के जोत लेले छछने पुतरिया
सपना के मेला में ना केहू बा संघाती। जिनिगी....

गंगो जी के तीरे खाली छोटहन गगरिया
चुटकी भर उतरे ना अँगना अँजोरिया
कइसे जोगाई केहू बिधना के थाती। जिनिगी....

आम मोजराये कबो महुआ फुलाये
तबहूँ कसाह गंध कबहूँ ना जाये
पीर में डूबेला रोज जिनिगी के पाती। जिनिगी....

</poem>
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