भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवती प्रसाद द्विवेदी |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=भगवती प्रसाद द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>सूख गइल सरिता उमंग के, कुम्हिला गइल सुमन,
कहाँ निरेखीं आपन सूरत, दरक गइल दरपन।
अँगना में तुलसी के बिरवा परल घवाइल बा,
पुरवा का लहरा में कइसन दरद सनाइल बा,
अमरैया के छाँह ठाढ़ हो गइल काढ़ि के फन।
बाज झपट्टा मरलस कब, ले भागल आस-हुलास,
मन-पाखी के खोंता उजड़ल, चटक गइल बिसवास,
डोरी कटल तिलंगी-अस जिनगी तड़पे छन-छन।
डगमगात कागज के नैया, गरजत बा मँझधार,
जेही बनल मसीहा ऊहे निकल गइल बटमार,
खाक भइल अपनापन, काटे धावे हर चितवन।
चलत-चलत तन-मन टूटल, तबहूँ ऊहे ठहराव,
रोज-रोज के जीयल-मूअल अब बन गइल सुभाव,
कब अन्हार के कूहा फाटी, बिहँसी नई किरन ?
कहाँ निरेखीं आपन सूरत, दरक गइल दरपन।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=भगवती प्रसाद द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>सूख गइल सरिता उमंग के, कुम्हिला गइल सुमन,
कहाँ निरेखीं आपन सूरत, दरक गइल दरपन।
अँगना में तुलसी के बिरवा परल घवाइल बा,
पुरवा का लहरा में कइसन दरद सनाइल बा,
अमरैया के छाँह ठाढ़ हो गइल काढ़ि के फन।
बाज झपट्टा मरलस कब, ले भागल आस-हुलास,
मन-पाखी के खोंता उजड़ल, चटक गइल बिसवास,
डोरी कटल तिलंगी-अस जिनगी तड़पे छन-छन।
डगमगात कागज के नैया, गरजत बा मँझधार,
जेही बनल मसीहा ऊहे निकल गइल बटमार,
खाक भइल अपनापन, काटे धावे हर चितवन।
चलत-चलत तन-मन टूटल, तबहूँ ऊहे ठहराव,
रोज-रोज के जीयल-मूअल अब बन गइल सुभाव,
कब अन्हार के कूहा फाटी, बिहँसी नई किरन ?
कहाँ निरेखीं आपन सूरत, दरक गइल दरपन।
</poem>