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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जौहर शफियाबादी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=जौहर शफियाबादी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>होला कबो बहार त पतझड़ जमीन पर
लीला ई रोज देखेला अँखिगर जमीन पर
अँखिया में अँखिया डार के कहलें ऊ अनकहल
नेहिया के फूल खिल गइल बंजर जमीन पर
मोजर सिंगार देख के अइकत बा आम पर
रोपले बा जे बबुर के रसगर जमीन पर
धधकत चिता भरोस के देखत रहीले हम
चुपचाप अपना आस का मजगर जमीन पर
मजहब धरम के नाम का नफरत के बिस ह
ई आज के सवाल बा लम्हर जमीन पर
घर-घर में घर के रूप घरारी के मान बा
घर जे बनाई नेह का मजगर जमीन पर
आपन जे पेट काट के अनकर छुधा भरे
ऊहे सरग उतारेला ‘जौहर’ जमीन पर
</poem>
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<poem>होला कबो बहार त पतझड़ जमीन पर
लीला ई रोज देखेला अँखिगर जमीन पर
अँखिया में अँखिया डार के कहलें ऊ अनकहल
नेहिया के फूल खिल गइल बंजर जमीन पर
मोजर सिंगार देख के अइकत बा आम पर
रोपले बा जे बबुर के रसगर जमीन पर
धधकत चिता भरोस के देखत रहीले हम
चुपचाप अपना आस का मजगर जमीन पर
मजहब धरम के नाम का नफरत के बिस ह
ई आज के सवाल बा लम्हर जमीन पर
घर-घर में घर के रूप घरारी के मान बा
घर जे बनाई नेह का मजगर जमीन पर
आपन जे पेट काट के अनकर छुधा भरे
ऊहे सरग उतारेला ‘जौहर’ जमीन पर
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