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<poem>हम त शहर में गाँव के जिनिगी बिताइले
मनमीत जहँवाँ पाइले हहुआ के जाइले

भाई भरत के भाव मन में राम रूप ला
सत्ता के लात मार के नाता निभाइले

रीढ़गर कहीं झुकेला त सीमा साध के
सुसभ्य जन के बीच हम बुरबक गिनाइले

धवल लिवास देह पर, बानी बा संत के
करतूत उनकर जान के हम गुम हा जाइले

कामे केहू का आईं त होला बहुत सबूर
भलहीं भरोस आन पर कर के ठगाइले

जेकर ईमान ताक पर बा ओकरे घर खुशी
तंगी हम ईमान के अपना बँचाइले

लिहले लुकाठी हाथ में लउकित कहीं कबीर
जेकरा तलाश में हम पल-पल ठगाइले

‘जयकान्त’ जय विजय के भरोसा का हम कहीं
अपजस में जस के दीप हम हर दिन जराइले
</poem>
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