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Kavita Kosh से
गीत
<poem>सखि बसंत आया ।
कोयल की कूक तान,
व्याकुल से हुए प्राण,
बैरन भई नींद आज,
साजन संग भाया ।
सखि बसंत आया ।
लगी प्रीत अंग-अंग,
टेसूओं के लाल रंग,
बिखरी महुआ सुगंध,
मदिरा मद छाया ।
सखि बसंत आया ।
पाँव थिरक देह हिलक,
सरसों की बाल किलक,
धवल धूप आज छिटक,
सोन जग नहाया ।
सखि बसंत आया ।
अमुवा की डार-डार,
पवन संग खेल हार,
उड़ गुलाल रंग मार,
सुखानंद लाया ।
सखि बसंत आया ।</poem>
कोयल की कूक तान,
व्याकुल से हुए प्राण,
बैरन भई नींद आज,
साजन संग भाया ।
सखि बसंत आया ।
लगी प्रीत अंग-अंग,
टेसूओं के लाल रंग,
बिखरी महुआ सुगंध,
मदिरा मद छाया ।
सखि बसंत आया ।
पाँव थिरक देह हिलक,
सरसों की बाल किलक,
धवल धूप आज छिटक,
सोन जग नहाया ।
सखि बसंत आया ।
अमुवा की डार-डार,
पवन संग खेल हार,
उड़ गुलाल रंग मार,
सुखानंद लाया ।
सखि बसंत आया ।</poem>