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मुरझाया वह कंज बना जो मोती का दोना,<br>
पाया जिसने प्रात उसी को है अब कुछ खोना; <br><br>
आज सुनहली रेणु मली सस्मित गोधूली ने; रजनीगंधा आँज रही है नयनों में सोना !<br>