भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br>बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br>
झोंके पुरवाई के लगते, बादल के दल नभ पर भगते,<br>कितने मन सो-सोकर जगते, नयनों में भावुकता छाई।<br><br>
लहरें सरसी पर उठ-उठकर गिरती हैं सुन्दर से सुन्दर,<br>हिलते हैं सुख से इन्दीवर, घाटों पर बढ आई काई।<br><br>
घर के जन हुये प्रसन्न-वदन, अतिशय सुख से छलके लोचन,<br>प्रिय की वाणी का अमन्त्रण लेकर जैसे ध्वनि सरसाई।<br><br/poem>