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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= गौतम अरोड़ा
|संग्रह=
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>केई बार
जद आप म्हारे दोळे व्हिया,
म्हे,
इन मुट्ठी में इज तो बंद है ,
म्हारा मुट्ठी भर सुपना
म्हारो बैत भर आकास !</poem>