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पंचलड़ी / जोगेश्वर गर्ग

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}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>बोल्यां विगर समझलै भाई, वै बातां
बोलण में कोनी चतुराई, वै बातां
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