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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}<Poempoem> कांई हुवै परेम ?
विचारतौ उभौ हो ऐकलौ
कै याद आयगी
दादी सा री डकार लाम्बी !‘‘ "वासना पुरख री है सरपअर लुगाई री ओट है बाम्बी !
जिण रै सरणै हुंता‘ई
अलौप हूज्यै सरप
टूटज्यै पुरख रौ दरप !’’"
कैंवता दादी सा,
परेम लाडी ! आ‘ई डकार हुवैजे आदमी री सुरतां मांय करतार हुवै !
</Poem>