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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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हांसता-हांसता
अचाणचकै चुप क्यूं हो ज्यावै लोग
घणी देर तांई
इकलग क्यूं नीं सकै हांस ।हांस।
सोचूं:
जिकै नै देखण री
नई हुवै वां मांय
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