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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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घर
मेरो घर
बण ज्यावै
कणाई-कणाई कचरा पेटी !
म्हूं होळै-होळै सावटूं
एक-एक बस्त
अर हो ज्याऊं पस्त
देख‘र कूटळौ !
सोचूं .....
कांई फरक है
इण समाज
अर म्हारै घर मांय !
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