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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}<Poempoem> ‘‘पित्तर "पित्तर निराज है’’है"
मां जद-जद ई कैवे आ बात
घर री छात उपर
खिण्ड ज्यावै आखा !
ढूंढ ई ल्यावै मां
गांव री मरियल सी दुकान रा
बोदा पतासा
परसाद म्हारै बूढ़ै थानां रो !
पित्तर निराज नीं होवणा चाइजै
मां कैवै-
भळ और सासीलाम !
दुगड़ी रे गूमड़ै मांय
नीं पडै़ राध !
बिछावणां मांय मूतै नीं
मोतियो !सीधो काडूंली थारै नाम !
पण मां नी सुण सकै
पित्तरा रा ठहाका
लटकता घर री बूढी भींता सूं !
घर -
होळै-होळै
दुगड़ी रै गुमड़ां मांय
अर निकळ‘ई ज्यावै मूत
मोतियै रो गूदड़ा मांय !
फेर ई
मानती रैवै मां
कै सो कीं ठीक कर देवैला
पित्तर महाराज !
अठै तांई कै
जीमण रै टैम
पित्तर जी उपर रैवे
मां री आस्था
अखूंट !
</Poem>