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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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पेड़
कठै‘ई उगै धरती उपर
ऐकसी हुवै मुस्कान
वां री डाळ उपर हींडती
गोरी अर काळी छोरया री !
म्हैं सगळा
पेड़ न काटण वाळा
वै ही हाथ है
अर वा ही लोह री आरी है ! 
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