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ओळूं-समंदर / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poem>
 
सांचाणी
घणो चोखो लागतो
हाल तांई नीं भूल्यो
उण ओळू-समंदर में
गोता खावणै रो सुख !  
</Poem>
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