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छोरी: चार / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem>  
बगत माड़ो है
इण कारण
घूम लैवे
आखी दुनियां।
 </Poempoem>
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