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दरसण / सत्यप्रकाश जोशी

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|रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी
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<Poempoem>   
कांई कांई सम्हाळूं म्हारा कांन्ह !
कांई कांई सम्हाळूं ?
तौ ई रसीलौ तूट तूट जावै।
कठा लग तूटयोड़ी कडियां नै बीणूं रे कांन्ह !
कठा लग भेळी करूं ?
ए रूपा रा बिछिया बाजणा
खोलूं तौ पगां लागूं,
तौ ई नखराळा बिखर-बिखर जावै।
कठा लग घूघरा अंवेरूं रे कांन्ह !कठा लग बिछिया अंवेरूं ? </Poempoem>
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