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ब्याव (2) / सत्यप्रकाश जोशी

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|रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी
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<Poempoem> नई कांन्ह ! नईं
थारै म्हारौ ब्याव कोनी हो सकै !
छळछळाती आंख्यां
देखती देखती पराई जो आसी।
 </Poempoem>
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