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ब्याव (5) / सत्यप्रकाश जोशी

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|रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी
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<Poempoem> नई कांन्ह ! नईंथारौ म्हारौ ब्याव कोनी हो सकै !
थारी म्हारी बात ई न्यारी,
स्रिस्टी रै पै‘लै दिन सूं
एक दूजा नै ओळखां,
आपा रौ ब्याव कियां होवै ?
म्हारै आंगणियै लाखां नै
साई दै क्यूं बुलाऊं ?क्यूं स्वयंवर रचाऊं ?क्यूं हरण रौ सांग कराऊं ?
नारी रै माथै री मांग
पुरख रै बळ सूं क्यूं तोलूं ?म्हारी प्रीत अबोली, म्हैं क्यूं बोलूं ? </Poempoem>
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