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बदळग्यो बगत / गौरीशंकर प्रजापत

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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>आज बदळग्यो बगत
सगळा रै मोड़ो होवै
बगत कोनी किणी पाखती
सगळा ‘ओछो-मारग’ जाणो चावै
भाईजी! जमलोक खातर
क्यूं ओछो-मारग अपणावो

पैली नाक खातर हा सगळा कळाप
मिनख मर जावतां नाक खातर
ओ मरणो अर वो मरणो
फरक कांई दोनूं मांय
दुनिया री सगळी माया
इज्जत मांय करै इजाफो
जिणरी खावां बाजरी
उणरी बजावां हाजरी....

आज नाक भलाई कटावो
का काटो किणी री नाक
बस आपणो काम होवणो चाहीजै
थोड़ै में घणो चावै
हर जागा स्कीम मांगै
जोवै फोगट में कुण किण भेळै
कांई साव बदळग्यो बगत
क्यूं समझै कोनी
कान तो खुद रा ई खींचीजैला
का अठीनै सूं
का बठीनै सूं
कदैई कोई जागा
पासा फोर करियां सूं
कमती-बेसी कोनी होवै...</poem>
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