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|संग्रह=मायड़ रो हेलो / कन्हैया लाल सेठिया
}}
{{KKCatMoolRajasthaniKKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>हिन्दी म्हांरी भाण, नहीं कीं
हिन्दी सूं नाराजी ?
कोनी कीं स्यूं छानी !
इण री बढती देख घणो ही
जीव हुवै है राजी !</poem>