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<poem>
सियावर काल्हे सखी चलि जइहें।
अवध नरेश सनेस पेठाए डेरा कूच हो जइहें।
सारी महलिया में हलचल मचल बा सारी बारात चलि जइहें।
दुलहा के सूरत भूलत नाहीं प्राण लिए चलि जइहें।
हँसि-हँसि पूछेली सारी से सरहज कोहबर से जाने ना पाइहें।
तन-मन-धन सभ वारन कइनी कइसे निठुर होई जइहें।
द्विज महेन्द्र जिया मानत नाहीं प्रेम के नइया डुबइहें।
</poem>
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