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<poem> सुन्दर सोहावन वस्तु जितने हैं जनकपुर के चौहट बाजार प्यारे तुम को दिखलाऊँ मैं।
नैन मिथिलानी तीनो लोक में बखानी मोहताज मुनी ज्ञानी ताको अबहीं बोलाऊँ मैं।
एक बार ताके परे चैन नाहीं बाके चली घूँघट बना के ताके जिया ललचाऊँ मैं।
राज के कुमार यही सुन्दर सुजान राम साम ओ सबेरे मुनी पास चली आऊँ मैं।
</poem>
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