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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
}}
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<poem> प्रेम की नाँव कुदाँव फँसी मन मोर मल्लाह सलाह कहाँ है।
अवसर था जो छूट गया जल आवत जात न जोर रहा है।
उम्र नदी इतनी उमगी सखी जोबन के धन जात बहा है।
महेन्द्र कहे सखी लाज तजों जब लाग गई तब लाज कहाँ है।
</poem>
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<poem> प्रेम की नाँव कुदाँव फँसी मन मोर मल्लाह सलाह कहाँ है।
अवसर था जो छूट गया जल आवत जात न जोर रहा है।
उम्र नदी इतनी उमगी सखी जोबन के धन जात बहा है।
महेन्द्र कहे सखी लाज तजों जब लाग गई तब लाज कहाँ है।
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