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<poem> नैन मतवारी सुनो गोप के कुमारी,
दान दे दो हमारी ना तो जमुना पार जइहों ना।
होरी के दिन में लोग लेते हैं इनामें,
हम तो मांगत घाट प्रेम दान तातों प्यारी तू रिगैहों ना।
अंत तरसइहों यह यौवन बीत जइहो,
फेरू अवसर नाहीं अइहों मेरी बात को भुलइहो ना।
द्विज महेन्द्र गोरी बात मान लो मोरी तू,
चाहे काल्ह अइहो चाहे घरहीं रही जइहों ना।
</poem>
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