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<poem> सुरमा सजीलें आँख दाँतन में मिस्सी भरे,
लाली है अधर पान काम उपजाने को।
सोहत है भुज दंड अँगनिया की है तंग,
निरखत है अंग-अंग प्रीतम ललचाने को।
झूलनी बहारदार गर्णफूल कानन में,
जड़ित मणिमाल लाल अंगूठी देखाने को।
द्विज महेन्द्र नई है नवेली अलबेली आज,
चली है सिंगार साज प्रीतम फँसाने को।
</poem>
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