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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem> भई है निहाल नृपलाला को देखि सीया एक टक लाई रही प्रेम रस भीना है।
चित्र-सी खरी है रूप हृदय में धरी है पै सोच में परी है प्रण याद सब कीना है।
ललकी लला को धरने को उर चाहते है लोक लाज के सिंगार नीचे सिर कीना है।
द्विज महेन्द्र अति अनंद देख के मुखार बिन्द सीया सोने की अंगूठी राम साँवरो नगीना है।
</poem>
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