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<poem>कोहबर में अइलें राम इहो चारो भइया आ हो सँवरियो लाल।
मँड़वा भइलें उजियार।
सोने के थारी में आरती उतरलीं आ हो सँवरियो लाल।
साँवरी सुरतिया के निहार।
माथे पे मुकुट लाजे कुंडल विराज ए हो सँवरिया लाल।
अँखि या त बाटे मजेदार।
कहत महेन्द्र भरी देखनी नयनवाँ ए हो सँवरिया लाल।
सीया जी के बाढ़ो एहवात।
</poem>
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