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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>मोरा उमके जोबनवाँ सजनवाँ नादान।
निहुरी-निहुरी हम अँगना बहरली से देवरा निगोरा निरखे साँझ ओ बिहान।
कोइली के बोली मोरा तनिको ना भावेला बिरहा सतावे मारे जियरा में बान।
सासु के चोरी-चोरी सुतलीं अंगनवाँ से जागते में सखीया होखेला विहान।
नइहर के इयारी मोरा बाबा छोड़वले महेन्दर निहार अब तो जात बा परान।
</poem>
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