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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>मोरा छोटका बलमुआँ के घुँघरवाली बाल।
नैना रसीली इनकर गोरे-गोरे गाल।
सासुजी का चोरी-चोरी माथवा बन्हवनी से दांतवा में मिस्सी चमके बिंदिया लिलार।
धानी दुपट्टा पहिनी सुरूखी चुनरिया रे फारेला जोबन मोरा चोली बूटीदार।
रिमझिम बरसेला सावन के महिनवाँ कि लइहों रे हिंडोला आइल सावन के बहार।
निरखे महेन्द्र मोरा उमँगे जोबनवाँ से कइसे के छिपाईं अब तो भइलें जिउआमार।
</poem>
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