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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>अंगुरी में डँसले बिया नगीनियाँ मोर बलटुआँ हो
सुतल रहनी ऊँची रे अटार।
देवरा निगोरा मोरा जगाए नाहीं जागे मोर बलमुआँ हो
छतिया में का दूनी सभाय।
पटना सहरिया से बैदा बोलादऽ मोर बलमुआँ हो
बैदा दरदिया हरले जाय।
सासु मोरा मरिहें ननद गरियहइें मोर बलमुआँ हो,
अधिका दरदिया बढ़ि जाय।
छोटकी ननदिया मोरा जनमे के बइरी मोर बलमुआँ हो,
केहूना ई दूख पतियाय।
तोहराके लेके हम अलगा होके रहब मोर बलमुआँ हो
घर भर से अलगा कराय।
खूबे मजा आई अकेला-छकेला मोर बलमुआँ हो,
देवरा के अँगूठा देखाय।
अनका से महेन्दर हम हँसि-हँसि बोलब मोरा बलमुआँ हो
देवरू के खूब लालचाय।

</poem>
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