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|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र
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<poem>फाटल-फूटल बांसवा के बंसिया बनवलऽ कि पोरे-पोरे।
विष भरली बंसुरिया कि पोरे-पोरे।
जा दिने कान्हा मोरा बंसिया बजवलें नीको नाहीं
लागे अंगना दुअरवा कि नीको नाहीं।
चुनि चुनि कलिया के संेजिया डँसवली चहिुकिए के।
गोरी जागे सारी रतिया चिहुँकिए के।
पाकल-पाकल पानवाँ के बीड़ाबा लगवली ना अइले।
तेजी के पुरूबी नगरिया ना अइलें।
वृंदावने बाजेली मधुरी बंसुरीया कि कुंज बने।
मोहन छेंकेलें डगरिया कि कुंज बने।
निरखे महेन्दर तोरी नैना कजररिया लाग गइलें।
उनके बांकी रे नजरिया कि लाग गइलें।
</poem>
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