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<poem>या इलाही तू बचाना बेवफा के हाथ से।
दिल्लगी चूल्हे में जाये बाज आये साथ से।

धमकियाँ और गालियाँ अभी दूर हो जा पास से।
हर घड़ी हम दम का झगड़ा नाको दम है बात से।

दिन-ब-दिन बढ़ती सरारत है लड़कपन घात से।
बातों बातों में बिगड़ जाता सरे औकात से।

आरजू सुनता नहीं बकता है टेढ़ी बात से।
ऐ खुदा मुझको छुड़ा देा इस बला के साथ से।

खंजर जो खूनी लिए हैं लड़ गई वो आँख से।
कितने घायल हो गये इस आशिकी के हाथ से।

क्या करूँ अब तो महेन्दर फँस गये हम नाज से।
पड़ गई दिल में गिरह तो कौन खोले हाथ से।

</poem>
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