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कब्र / हरकीरत हकीर

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वक़्त की
हथेली पर
पड़ी दरारों ने
आह भरी
और धीमे से कहा
रखूँ मैं पैर किस जगह ?
हर दरार में नफरतें
रिश्तों की कब्र
खोदी बैठी हैं …. !!
</poem>
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