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मौत का दिलासा / हरकीरत हकीर

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<poem>आज आँख रोई
तो मौत ने हाथ पकड़ लिया
आहें क्यों बहती हो
अँधेरी रातों में
सवेर बैठता है
गमों की झील नहीं रात

तेरा जीना नजायज नहीं था
अजन्ता एलोरा की गुफाओं में
बैठा है औरत का सच …

कोई भट्ठी तपती है
तो ज़िन्दगी हाथ सकती है
मुहब्बत उम्रें नहीं देखती
जा चारपाई के वे तंद बाँध
जो रस्सियाँ तोड़ सकें
फिर हम दोनों
साथ चलेंगे …
</poem>
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