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तहखानों तक / हरकीरत हकीर

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<poem>कोई ठंडी हवा का झोंका
आधी रात मेरे लहू में
अक्षर - अक्षर हो …
लिख जाता है किताब
कभी तो आ …
दिल के तहखानों तक
जिसकी टूटी सतरें जोड़
कोई नज़्म बना सकें …
</poem>
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