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|रचनाकार=देवी प्रसाद मिश्र}}{{KKCatKavita}}
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इन्द्र, आप यहाँ से जाएँ
तो पानी बरसे
तो हवा चले
तो कुछ क्रोध आना शुरू हो
जो कुछ कह रहे हैं
प्रार्थना के शिल्प में नहीं
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