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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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नफ़स-नफ़स, क़दम-क़दमभाषा की लहरें</div>
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रचनाकार: [[शलभ श्रीराम सिंहत्रिलोचन]]
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नफ़स-नफ़सभाषाओं के अगम समुद्रों का अवगाहनमैंने किया। मुझे मानव–जीवन की मायासदा मुग्ध करती है, क़दम-क़दमअहोरात्र आवाहनबस एक फ़िक्र दम-ब-दमघिरे हैं हम सवाल सुन सुनकर धाया–धूपा, मन में भर लायाध्यान एक सेएक अनोखे। सबकुछ पायाशब्दों में, हमें जवाब चाहिएदेखा सबकुछ ध्वनि–रूप हो गया ।जवाब दर-सवाल है कि इन्क़लाब चाहिएमेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।इन्क़लाब ज़िन्दाबादमुद्रा, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,ज़िन्दाबाद इन्क़लाबजीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।जहाँ आवाम के खिलाफ साजिशें हों शान सेजहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ भाषा ।भाषा की अंजुली सेमानव हृदय टो गयावहाँ न चुप रहेंगे हमकवि मानव का,कहेंगे हाँ कहेंगे हमजगा नया नूतन अभिलाषा ।हमारा हक हमारा हक हमें जनाब चाहिएइन्क़लाब ज़िन्दाबादभाषा की लहरों में जीवन की हलचल है,ज़िन्दाबाद इन्क़लाबध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है
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